क्या है कृष्ण हो जाना.. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर यह कृति मोह लेगी आपका मन

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आदित्य साहू
Updated Aug 19, 2022 | 18:32 IST

Happy Janmashtami 2022: भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस मौके पर देशभर में कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। हम आपको भगवान श्रीकृष्ण के ऊपर लिखी ऐसी कृति पढ़ाते हैं, जो आपका मन मोह लेगी।

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भगवान कृष्ण  |  तस्वीर साभार: Twitter
मुख्य बातें
  • पूरे भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
  • लड्डू-गोपाल की भक्ति में डूबे हुए हैं भगवान श्रीकृष्ण के भक्त
  • भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है जन्माष्टमी

Happy Janmashtami 2022: पूरे देश में आज यानि 19 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हर साल जन्माष्टमी मनाई जाती है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस मौके पर देशभर में कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। खासकर मथुरा और वृंदावन में तो जन्माष्टमी काफी हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। इस मौके पर आपको भगवान श्रीकृष्ण के ऊपर लिखी ऐसी कृति पढ़ाते हैं, जो आपका मन मोह लेगी। आप भी पढ़िए- 

क्या है कृष्ण हो जाना ?

“कृष्ण,
युगों से आकृष्ट करता एक ऐसा व्यक्तित्व,
जिसे प्यार भी मिला, 
तो सबसे अधिक आलोचना भी,
जो भगवान है किसी के लिये,
तो किसी के लिए छलिया,
वो प्रेम की गलियों में प्रेम का पयार्यवाची है ,
तो राधा के साथ सबसे दिलों में बसता भी है,
आखिर क्या है कृष्ण में ?
जो अपनी ओर खींचता है तो,
फिर वापिस लौटने का रास्ता ही हो जाता है,
स्वतः बन्द,
आख़िर क्या है कृष्ण ? 
क्या है कृष्ण हो जाना ?
क्या अनेक से प्रेम करना है कृष्ण होना ?
या योग में डूबा योगयोगेश्वर है कृष्ण ?
समझना होगा कि क्या है कृष्ण होना ,
क्योंकि कृष्ण ही हैं,
जो सिखाते हैं कि,
ना तो भक्ति के मार्ग को त्यागना है,
और ना ही भक्ति के लिए ,
सांसारिक कार्यों को तिलांजलि देना है,
जो बताता है कि,
प्रेम है स्वयं को आनंद से, उमंग से, तरंग से भर देना,
जहाँ चाहना नहीं,
सिर्फ़ देने का भाव हो,
जहाँ उन्नति और  प्रगति के लिए,
अपना सर्वस्व न्यौछावर करना ही है,
प्रेम करना,
इसलिए वह बंध नहीं सकता एक तक,
वृष्टि से समष्टि तक,
ले जाता है प्रेम,
जो सिर्फ एक तक सीमित हो,
वो प्रेम कैसा ?
जिस प्रेम में
‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना नहीं,
वो प्रेम नहीं,
धृतराष्ट्र की तरह मोह है,
और हम सब कहीं न कहीं,
अपने- अपने मोह को प्रेम का नाम दे,
गढ़ते हैं अपने- अपने हिसाब से,
प्रेम की परिभाषाएं और मानदण्ड,
और थोपते हैं,
अपनी विचारधाराएं,
कृष्ण को आलम्ब बना,
अपने अहंकार को त्याग,
किसी का सारथी बन,
मार्ग दिखाना है,
कृष्ण होना,
सब कुछ खोकर भी,
प्रेम के गीत गाना है,
कृष्ण होना,
जो मिले उसी को स्वीकार कर,
उसे ही सुन्दर बनाना है, 
कृष्ण होना, 
और हाँ,
कृष्ण को मानना भक्ति नहीं है ,
बल्कि कृष्ण की मानने से,
जीवन में भक्ति और उन्नति का ,
होता है सूत्रपात, 
 इसलिए जाइये,
किसी कृष्ण जैसे पूर्ण सद्गुरु के पास,
जो सिर्फ ईश्वर की बातें ना करे,
बल्कि कृष्ण की तरह,
करा सके साक्षात्कार,
और जब आता है कृष्ण जैसा पूर्ण गुरु,
तो वो बना लेता है,
अपने जैसा,
और ऐसे सद्गुरु की शरण में जा,
देश, धर्म और समाज की,
सर्वोन्नति के समर्पित हो जाना है,
कृष्ण हो जाना।”

डॉ. श्याम ‘अनन्त’ ने इन लाइनों में भगवान 'कृष्ण' होने का मतलब बता दिया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, श्री कृष्ण की पूजा करने से जीवन सुखमय रहता है और श्रीकृष्ण की कृपा सदैव अपने भक्तों पर बनी रहती है। हिंदू धर्म शास्त्रों के मुताबिक, जन्माष्टमी पर नीशीथ काल में भगवान श्री कृष्ण की पूजा की जाती है।

(लेखक डॉ. श्याम सुन्दर पाठक ‘अनन्त’ उत्तर प्रदेश वस्तु एवं सेवा कर विभाग में असिस्टेंट कमिश्नर पद पर कार्य़रत हैं )

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